होली रंगों का उत्सव है और ज़िंदगी को रंगों से कैसे भर सकते हैं ये त्यौहार हमें यही बताता है। होली यानी उल्लास। होली मनाने का एक आध्यात्मिक और परम्परागत महत्त्व है इसलिए ईश्वर के हर रूप से जोड़ता है ये हमें।होली का उत्सव बिना राधा -कृष्ण के रास के अधूरा है। राधा – कृष्ण अर्थात भक्ति और प्रेम का अनूठा जोड़।
प्रभु के सानिध्य में खेली गयी होली हमें उन्हीं के रंग में रंग देती। कन्हैया का साँवरा रंग यानी प्रेम का रँग और राधा जी का गोरा रँग यानी भक्ति का रंग। वैसे तो पूरा देश ही होली के रंगों से सराबोर रहता है पर बात अगर नँदगांव- बरसाना की की जाए तो यहाँ की होली अपने आप मे ही अदभुत है।
रंगों के साथ – साथ लाठियों के सँग खेली जाने वाली होली ,
यहाँ की होली “लट्ठ मार” होली के नाम से प्रसिद्ध है, चूँकि भगवान श्री कृष्ण नँदगांव के है राधारानी बरसाना की हैं, कान्हा जी अपने गोप ग्वालों के सँग राधा रानी और उनकी सखियों से होली खेलने बरसाना आया करते थे वो मान्यता आज भी जारी है। इसलिए मान्यता के अनुसार यहाँ के लोग नँदगांव और बरसाना में रिश्तेदारी मानते हैं और आपस मे होली खेलते हैं।
पहले दिन नँदगांव के आदमी बरसाना की औरतों के संग होली खेलने आते हैं जिसमे औरतें उनका स्वागत लाठियों से करती हैं। औरतें उनके सिर पर लाठियों से मारती हैं जिनसे बचने के लिए वो एक ढाल सिर पर रखते हैं इसतरह से ये लट्ठमार होली खेली जाती है। दूसरे दिन वहाँ के आदमी एक दूसरे संग होली खेलते हैं। हज़ारों की संख्या में लोग यहाँ आते हैं और यहाँ के पारंपरिक तरीके से होली खेलते हैं। मंदिर परिसर रंगों और अबीर गुलाल से सराबोर हो जाता है बच्चा बच्चा होली की मस्ती मे झूमता दिखायी देता है। चारों तरफ़ गीत – संगीत नाचना उत्सव ऐसा है अदभुत नज़ारा दिखाई देता है।
होली का अलग तरह का अनुभव होता है यहाँ । जीवन की सुखद अनुभूति होती है।
आइए आनंद ले इस प्रेम और रंगो के उत्सव का , विश्व प्रसिद्ध लट्ठमार होली श्री धाम बरसाना में-
श्री धाम बरसाना में होने वाले उत्सव की सूचि-:
3 मार्च- लड्डू होली समय सायं ४ से ६
4 मार्च- बरसाना लट्ठमार होली समय सायं ४ से ७
5 मार्च- नंदगाव लट्ठमार होली समय सायं ४ से ७