हे ऊधो तुम का जानो प्रीत
कान्हा मेरे हमरे प्रान बसत है,
हम सबके वे मीत।
जब से कान्हा गोकुल त्यागे,
हमे गए बिसराय,
हम गोपिनियाँ राह निहारें,
जाने ..कौन घड़ी वो आयें,
हे ऊधो तुम का जानो प्रीत।
आँखन का तुम दुख न समझो,
जिनमे कृष्ण समाये,
रस्ते पर हैं नयन बिछाये,
जाने …कौन गली से वो आये।
हे ऊधो तुम का जानो प्रीत।
इस मन का तुम दुःख ना समझो,
व्याकुल सा घबराए,
साँवरिया जो दर्शन ना दिन्हे,
प्रानन से हम जाएँ,
हे ऊधो तुम का जानो प्रीत।
कह दीजो तुम उनसे ऊधो,
अब ना देर लगाय,
अबके जो वो मिलन ना आये,
फिर कबहुँ ना हम मिली पायें।
हे ऊधो तुम का जानो प्रीत
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