राधा विरह

 

हे लाड़ो वृषभान दुलारी।
व्याकुल नैनन बहतन पानी।
विरह की अग्नि में जलकर।
प्रेम -प्रेम पत्र पौथी बांटी।
रोम-रोम में श्याम बसत है।
मोन मोन मन नाम जपत है।
घूँघट की कर ओट में रोती।
पनघट के घट छोर में बैठी।
अंग अंग फरकर है लागत।
जब जब गोपी कृष्णा है गावत।
कभी रोती कभी मन्द मन्द मुस्कावत।
कभी उलझे केश, बिन चुनर भागत।
कैसी दशा कर गयो निर्मोही।
राधा कह कर क्षण-क्षण रोयी।
एक बार दर्शन दिखलाजा।
मोको मेरो दोष बताजा।
हे मेरो चित चोर मनोहर।
अब तो करलो मोको चिन्तन।

|| प्रेम से बोलो राधे राधे ||

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Varsha(दीवानी कृष्णा की )

Varsha(दीवानी कृष्णा की )

वर्षा कश्यप एक होनहार Student है,और एक अच्छी job पाने के लिये प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रही है। भगवान श्री राधे गोविंद की उपासक वर्षा को बचपन से ही भगवान कन्हैया के भजन,पद इत्यादि लिखना बेहद पसंद है। भजनों में बेहद रुचि रखने वाली वर्षा का मानना है कि उसको कविताएँ लिखने की प्रेरणा भगवान गोविंद की कृपा से ही मिलती है।
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