हम सभी जानते है की, प्रभु श्री कृष्णा अपने बाल्य जीवन की लीलाये गोकुल, नंदगाव् और वृन्दावन में करके मथुरा चले गए थे और पीछे राधा रानी को विरह में छोड़ गए |
पर क्या सच में , विरह सिर्फ राधा रानी को हुआ था?
आइये जानते है, इस ख़ूबसूरत कविता के द्वारा..
विरह राधा को ही नहीं कान्हा को भी हुआ था ||
जिस माँ की गोद में बचपन बीता उस ममता से विरह हुआ था ||
जिस बाबा की ऊँगली पकड़ कर चले उस पिता से विरह हुआ था ||
जिन ग्वाल-बालों के साथ गौऐं चराई उस मित्रता से विरह हुआ था ||
जिस यमुना के तट पर खेले बचपन बीता उस बालपन से विरह हुआ था ||
जिन सखियों ने उनके लिए अपना सब त्याग दिया उस भक्ति से विरह हुआ था ||
जिस बांसुरी की धुन सुनकर सब सुद्बुध खो देते थे उस संगीत से विरह हुआ था ||
जो राधा उनकी आत्मा और वो जिनकी आत्मा थे उन प्राणों से विरह हुआ था ||
कान्हा को भी विरह हुआ था पर वो उनकी मधुर मुस्कान के पीछे छिप जाता था ||
इसलिए अब ये मत कहना की विरह राधा को ही हुआ था कान्हा को नहीं हुआ था ||
विरह में भी अपनों के लिए मुस्कुराने वाले नंदलाल की जय हो ||