शास्त्रों के अनुसार जटायु और भीष्म पीतामह दोनों को इच्छा मृत्यु का वरदान था। तो फिर क्यों जटायु को मिली भगवान श्री राम जी की गोद की शैय्या और भीष्म पितामह को विषैले बाणो की शैय्या आइये जानते है इस भयावय दृश्य को विस्तार पूर्वक-
अंतिम सांस गिन रहे जटायु ने कहा कि “मुझे पता था कि मैं रावण से नही जीत सकता लेकिन फिर भी मैं लड़ा यदि मैं नही लड़ता तो आने वाली पीढियां मुझे कायर कहतीं”
जब रावण ने जटायु के दोनों पंख काट डाले, तो मृत्यु आई और जैसे ही मृत्यु आयी तो गिद्धराज जटायु ने मृत्यु को ललकार कहा।
ऐ मृत्यु ! “खबरदार ! आगे बढ़ने की कोशिश मत करना! मैं तुझ को स्वीकार तो करूँगा लेकिन तू मुझे तब तक नहीं छू सकती जब तक मैं माता सीता जी की “सुधि” प्रभु “श्रीराम” को नहीं सुना देता। मौत उन्हें छू नहीं पा रही है, काँप रही है खड़ी हो कर मौत तब तक खड़ी रही, काँपती रही यही इच्छा मृत्यु का वरदान जटायु को मिला ।
किन्तु महाभारत के भीष्म_पितामह छह महीने तक बाणों की #शय्या पर लेट करके मृत्यु की प्रतीक्षा करते रहे आँखों में आँसू हैं वे पश्चाताप से रो रहे हैं भगवान मन ही मन मुस्कुरा रहे हैं। कितना अलौकिक है यह दृश्य रामायण मे जटायु भगवान की गोद रूपी शय्या पर लेटे हैं।
प्रभु “श्रीराम” रो रहे हैं और जटायु हँस रहे हैं। वहाँ महाभारत में भीष्म पितामह रो रहे हैं और भगवान “श्रीकृष्ण” हँस रहे हैं भिन्नता प्रतीत हो रही है कि नहीं?
अंत समय में जटायु को प्रभु “श्रीराम” की गोद की शय्या मिली लेकिन भीष्म पितामह को मरते समय बाण की शय्या मिली जटायु अपने कर्म के बल पर अंत समय में भगवान की गोद रूपी शय्या में प्राण त्याग रहे हैं प्रभु “श्रीराम” की शरण में और बाणों पर लेटे लेटे भीष्म पितामह रो रहे हैं।
ऐसा अंतर क्यों?
ऐसा अंतर इसलिए है कि भरे दरबार में भीष्म पितामह ने #द्रौपदी की इज्जत को लुटते हुए देखा था विरोध नहीं कर पाये और मौन रह गए थे! दुःशासन को ललकार देते दुर्योधन को ललकार देते।
तो उनका साहस न होता, लेकिन द्रौपदी रोती रही बिलखती रही चीखती रही चिल्लाती रही लेकिन भीष्म पितामह सिर झुकाये बैठे रहे नारी की रक्षा नहीं कर पाये।
उसका परिणाम यह निकला कि इच्छा मृत्यु का वरदान पाने पर भी बाणों की शय्या मिली और जटायु ने नारी का सम्मान किया अपने प्राणों की आहुति दे दी तो मरते समय भगवान “श्रीराम” की गोद की शय्या मिली।
जो दूसरों के साथ गलत होते देखकर भी आंखें मूंद लेते हैं उनकी गति भीष्म जैसी होती है
जो अपना परिणाम जानते हुए भी औरों के लिए संघर्ष करते है, उसका माहात्म्य जटायु जैसा कीर्तिवान होता है।