कलयुग की धरती बदलने लगी है।
हर तरफ अनोखी छटा बिखरने लगी है।
सतयुग की अयोध्या फिर चमकने लगी है।
बिना मौसम ही अनूठी छटा छाई है।
वक्त से पहले ही फिर दिवाली आई है।
इतिहास दोहराता है। खुद को
अब तो लगने लगा है।
दुनिया का रंग रूप भी बदलने लगा है।
जब इतना कुछ बदल रहा है,
तो क्यों ना थोड़ा सा हम भी बदल जाएं।
हर औरत बने सीता मैया,
हर पुरुष पुरुषोत्तम राम हो जाए।
‘जय श्री राम ‘
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