जाने प्रभु को क्या सूझी है?
जीवन सागर सा अथाह है,
ना दिखती कोई सरल राह है,
उम्मीदें भी बुझी-बुझी हैं।
जाने प्रभु को क्या सूझी है?
जीवन के घनघोर अँधेरे,
नहीं उजाले, नहीं सवेरे
किस्मत क्यों ऐसे रूठी है,
जाने प्रभु को क्या सूझी है?
कब होगा अब अंत व्यथा का?
हो आरम्भ एक नई कथा का,
क्या इसकी कोई युक्ति है?
जाने प्रभु को क्या सूझी है?
अब तो कोई राह दिखाओ,
हमको भी अब सबल बनाओ,
आज बताओ कहाँ कमी है?
जाने प्रभु को क्या सूझी है?
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