|| मुझे अपने ही रंग में रंग लो साँवरे
अपने ही रंग में। …..
|| मुझे भूलना है दुनिया दारी
नहीं रखनी किसी से भी यारी
|| मुझे अपने ही रंग में रंग लो साँवरे
अपने ही रंग में। …..
|| ये दुनिया है दो पल का मेला
एक दिन उड़ता हर पक्षी अकेला
|| मुझे अपने ही रंग में रंग लो साँवरे
अपने ही रंग में …..
|| हर पल घेरे लोभ, कपट और मोह माया
मै क्यों भरु लोभ पाप से अपनी ये काया
|| मुझे अपने ही रंग में रंग लो साँवरे
अपने ही रंग में …..
|| देखा जग में तो दगा ही दगा
बिन तेरे यहाँ पर कोई न सगा
|| मुझे अपने ही रंग में रंग लो साँवरे
अपने ही रंग में …..
वर्षा कश्यप एक होनहार Student है,और एक अच्छी job पाने के लिये प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रही है।
भगवान श्री राधे गोविंद की उपासक वर्षा को बचपन से ही भगवान कन्हैया के भजन,पद इत्यादि लिखना बेहद पसंद है।
भजनों में बेहद रुचि रखने वाली वर्षा का मानना है कि उसको कविताएँ लिखने की प्रेरणा भगवान गोविंद की कृपा से ही मिलती है।