वैसे तो हम सब ही श्री कृष्णा महामंत्र का जाप तो करते है लेकिन शायद ही किसी को इस महामंत्र का अर्थ मालूम हो तो आईये जानते है इसका उच्चारण सहित अर्थ हिंदी में-
श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारी हे
नाथ नारायण वासुदेवाय !
नाथ नारायण वासुदेवाय !
श्री = निधि
कृष्ण = आकर्षण तत्व
गोविन्द = इन्द्रियों को वशीभूत करना गो-इन्द्री, विन्द बन्द करना, वसीभूत
हरे = दुःखों का हरण करने वाले
मुरारी = समस्त बुराईयाँ – मुर (दैत्य)
हे नाथ = मैं सेवक आप स्वामी
नारायण = मैं जीव आप ईश्वर
वासु = प्राण
देवाय = रक्षक
कृष्ण = आकर्षण तत्व
गोविन्द = इन्द्रियों को वशीभूत करना गो-इन्द्री, विन्द बन्द करना, वसीभूत
हरे = दुःखों का हरण करने वाले
मुरारी = समस्त बुराईयाँ – मुर (दैत्य)
हे नाथ = मैं सेवक आप स्वामी
नारायण = मैं जीव आप ईश्वर
वासु = प्राण
देवाय = रक्षक
“अर्थात : हे आकर्षण तत्व मेरे प्रभु, इन्द्रियों को वसीभूत करो, दुःखों का हरण करो, समस्त बुराईयों का बध करो, मैं सेवक हूँ आप स्वामी, मैं जीव हूँ आप ब्रह्म, प्रभु ! मेरे प्राणों के आप रक्षक हैं “
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