|| हे मेरे गोविन्द ! हे मेरे प्रभु ! मै नहीं जानता की तुम कैसे प्राप्त होते हो ,
हे मेरे भगवान ! मै नहीं जानता की तुम्हारी भक्ति क्या है। तुम्हारा पूजन क्या है ।..
|| मुझे नहीं पता की मै तुम्हारे लायक हूँ या नहीं तुम्हरा भक्त बन सकता हूँ या
नहीं मुझे कुछ नहीं पता मुझे कुछ नहीं आता ।..
|| लेकिन फिर भी मै सिर्फ ये जानता हूँ की तुम मेरे भगवान,
मेरे प्रभु हो और मै तुम्हारा दास हूँ। मै सिर्फ ये जानता हूँ की तुम मेरे हो और मै तुम्हारा,
|| तुम्हारे बिना मै कुछ भी नहीं प्रभु ! मुझे पता है की मुझमें बहुत अवगुण है।
मै बहुत पतीत हूँ लेकिन प्रभु मुझे पता है। मै ये भी जानता हूँ ।..
|| की तुम केवल तुम ही हो जो ना धन देखता ना तन ना गुण ना अवगुण ना ज्ञान ना अज्ञान
तुम सिर्फ प्रेम देखते हो। प्रभु सिर्फ तुम ही हो दीनानाथ जो बिना किसी गुण के अपनाते हो, ।..
|| मुझे पता है प्रभु की केवल आप ही हो जो बिना किसी साधन के प्राप्त हो जाते हो जाते हो।
इसलिए मेरे प्रभु ! हे मेरे भक्तवात्सल्य ! मै तुम्हारे चरण कमलो में आया हूँ !
|| मुझे अपने चरणों में स्थान दो मुझे ये तो नहीं पता की मै तुम तक पहुंच सकता हूँ
या नहीं लेकिन हाँ प्रभु, मुझे इस बात का यकीन है की तुम्हारे लिए मेरा ये प्रेम,
|| ये अटूट विश्वास, तुम्हारे लिए मेरे ह्रदय में वो अनंत प्रेम पूर्ण भाव तुम्हे एक दिन मुझ तक जरूर पंहुचा देगा ,
हाँ प्रभु मुझे ये यकीन है की मै पहुँचू या ना पहुँचू लेकिन एक दिन तुम मुझ तक जरूर पहुँच जाओगे।
|| हे मेरे प्रभु बस मेरी आप से एक ही विनती है की मेरे हृदय में हमेशा तुम्हारा ध्यान रहे ।
मेरे चित में हमेशा तुम्हारी याद रहे। मै तुम्हे कभी भूलू ना। कैसी भी परिस्थिति हो ।
|| लेकिन मै तुम्हे हमेशा याद राखु हे मेरे प्रभु अगर देना ही है तो इस पतीत को, अपने इस दास को,
सिर्फ अपनी भक्ति देना अपने चरणों में एक छोटा सा स्थान और मेरे इस हृदय में हमेशा तुम्हारे लिए प्रेम बढ़े।
|| मै हमेशा तुम्हे याद रखू , मुझे और कुछ नहीं चाहिये प्रभु कुछ नहीं बस मै हमेशा तुम्हरा रहूं ||
हे मेरे प्रभु हे मेरे आराध्य कृपा बरसाए रखना
वर्षा कश्यप एक होनहार Student है,और एक अच्छी job पाने के लिये प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रही है।
भगवान श्री राधे गोविंद की उपासक वर्षा को बचपन से ही भगवान कन्हैया के भजन,पद इत्यादि लिखना बेहद पसंद है।
भजनों में बेहद रुचि रखने वाली वर्षा का मानना है कि उसको कविताएँ लिखने की प्रेरणा भगवान गोविंद की कृपा से ही मिलती है।