|| आ भी जाओ कृष्णा हमारे
कलयुग की धरती तुम्हे पुकारे ||
|| हर घर फिर वृन्दावन हो जाएं
माखन मिश्री दूध भर जाए ||
|| गीत मधुर गाये घर में
रास रचे फिर सुन्दर वन में ||
|| फिर वही यमुना तट हो जाये
फिर कोई ग्वाला गाय चराये ||
|| फिर कोई छलियाँ बन आ जाए
फिर कोई माखन दूध चुराए ||
|| प्रेम की फिर वर्षा हो जाये
ना फिर कोई तेरा – मेरा गाये ||
|| अब कलयुग कारावास सा लागे
तुम बिन भगवन कौन बचाए ||
|| जब जब धरती पाप से हारी
तब तब तुम अवतार ले आये ||
|| अब देर करो न जल्दी आओ
कृष्णा बनो या कलगी बन आओ ||
|| आ भी जाओ कृष्णा हमारे
कलयुग की धरती तुम्हे पुकारे ||
आ भी जाओ कृष्णा
वर्षा कश्यप एक होनहार Student है,और एक अच्छी job पाने के लिये प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रही है।
भगवान श्री राधे गोविंद की उपासक वर्षा को बचपन से ही भगवान कन्हैया के भजन,पद इत्यादि लिखना बेहद पसंद है।
भजनों में बेहद रुचि रखने वाली वर्षा का मानना है कि उसको कविताएँ लिखने की प्रेरणा भगवान गोविंद की कृपा से ही मिलती है।
[…] सी होकर मैं कृष्ण की नगरी में भटक रही […]
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