अभी तो खुद को जाना है , अभी समझना बाँकी है।
अभी तो पंख फैलायें है उड़ान भरना अभी बाँकी है।
अभी तो गिरकर बैठे है संभलना अभी बाँकी है।
अभी तो मंजिल पायी है, लेकिन चलना अभी बाँकी है।
अभी तो ख़्वाब देखा है, सच करना अभी बाँकी है।
अभी तो बस सोचा ही है, करना तो अभी बाँकी है।
अभी तो थोड़ा काम किया है, मेहनत पूरी बाँकी है।
देखीं बहुत पहचान लोगो की ,खुद की पहचान बाँकी है।
अभी तो उड़ना फिर गिरना, फिर उठना संभल के चलना।
फिर तेज दौड़ लगाना है बस हमे तो बस उस चींटी की भाँति।
गिर गिर कर भी चोटि पर चढ़ जाना है रुके बिना थके बिना।
मंजिल से मिल जाना है बस यही तो करके दिखलाना अभी बाँकी है।
वर्षा कश्यप एक होनहार Student है,और एक अच्छी job पाने के लिये प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रही है।
भगवान श्री राधे गोविंद की उपासक वर्षा को बचपन से ही भगवान कन्हैया के भजन,पद इत्यादि लिखना बेहद पसंद है।
भजनों में बेहद रुचि रखने वाली वर्षा का मानना है कि उसको कविताएँ लिखने की प्रेरणा भगवान गोविंद की कृपा से ही मिलती है।